"Залізний острів", новела Олеся Гончара (читати, завантажити)


Олесь Гончар

ЗАЛІЗНИЙ ОСТРІВ

Новела

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Олесь Гончар, Залізний острів, новелаБлакитніє  море.  Дитячим  щебетом  починається  ранок на  одному  з  мальовничих  півостровів,  що  по-тутешньому зветься  просто  кут.  На  куті  великий  старовинний  парк, один  із  тих,  що  їх  колись  насаджували  та  поливали  в таврійських  маєтках  заробітчани  та  місцеві  степовики,  чиї внуки  та  правнуки  зараз  ціле  літо  щебечуть  у  затінках цього  парку  та  смаглявіють  біля  моря  до  мулатної  смаглості.  «Комуна»  зветься  цей  кут  і  цей  парк,  тому  що  в двадцяті  роки  справді  була  тут  комуна  демобілізованих червонофлотців,  і  хоч  комуни  давно  нема,  але  ймення  від неї  досі  зосталось.  Восени  та  навесні,  доки  діти  в  школі,  у «Комуні»  проводяться  наради  районного  масштабу,  форуми  чабанів  або  кукурудзоводів,  сюди  ж  їдуть  відзначити  й Першотравень,  а  потім  на  ціле  літо  —  рясносонячне,  степове,  —  влада  тут  переходить  до  рук  хлопчаків  та  дівчаток, що  їх  з  усіх  усюд  звозять  сюди,  де  їхнім  житлом  стають цупкі  профспілкові  намети,  а  єдиним  начальством  —  виховательки  та  вожаті.
 Кут  ніби  створений  для  людей  безжурних,  веселих,  але  й з-поміж  них  виділяється  Тоня  Горпищенко,  виділяється своїми  вигадками,  і  завзяттям,  і  голосом,  що  в  неї  він  —  як веселий  дзвіночок!  Коли  не  глянеш,  вона  в  оточенні дітлашні,  і  хоч  нікому  Тоня  не  потурає,  як  і  їй  самій  батько не  потурав,  усякого  вміє  приструнчити,  однак,  незважаючи  на  це,  малюки  чомусь  линуть  до  неї  найбільше,  їм  з  нею гарно;  Тоню  вони  по-справжньому  люблять.  Її  веселої енергії  вистачає  і  на  танці,  і  на  співи,  і  на  різні  ігрища,  а дітям,  що  прибули  сюди  аж  з  обласного  центру,  ніхто  так цікаво,  як  Тоня,  не  розповість  про  різні  трави  та  про  комах,  про  муравок  та  степових  птахів,  вона  тобі  й  цикаду,  і ящірку  сама  зловить,  щоб  зблизька  її  з  дітьми  роздивитись.
Якщо  ж  ти  звичками  розгуба-роззява  і,  скупавшись,  там  і забуваєш  біля  моря  щось  із  своєї  амуніції,  щоб  хтось  за тебе  підбирав,  то  не  сподівайся  уникнути  нагінки,  Тоня-вожата  цього  тобі  не  пропустить.  З  її  легкої  руки  на табірному  подвір’ї  з’являється  така  собі  дошка  юних  забудьків,  де  красуються  розвішані  на  гвіздочках  кимось  забуті  труси,  приблудні  чиїсь  балетки,  чийсь  картуз...
 —  Бачите,  картуз  аж  плаче,  ніяк  не  знайде  свого  господаря  —  хто  ж  він?  Озовись!
 Люблять  з  нею  діти  ходити  в  походи,  а  оскільки  дивитись  тут  особливо  нема  чого,  все  степ  та  степ,  де  тільки  й побачиш  давній,  може,  ще  сарматський  курган  або  сліди капонірів  —  захистків,  де  під  час  війни  стояли  обкопані літаки,  —  то  найчастіше  Тоня  йде  з  дітьмй  по  дузі  затоки аж  до  того  місця,  де  над  самим  морем,  край  рудої  суші, соковито  зеленіють  кущики  очерету.
 —  Вгадайте,  звідки  цей  очерет?  Чому  ніде  більше  нема, а  тут  зеленіє?
 І  буває,  що  декотрий  з  дітлашні  і  здогадається:
 —  Мабуть,  тут  є  солодка  вода.
 —  О,  ти  в  нас  мудрець!
 В  очереті  справді  натрапляють  вони  на  таке  багатство, якому  й  ціни  не  складеш  у  степу:  криниця  чистої  джерельної  води!  Не  дуже  й  глибока  вона,  сонце  її  просвічує  аж  до дна,  а  саме  дно,  мов  у  каменоломні,  золотиться  уламками абияк  накиданого  каменю-черепашнику.  Дітям  —  розкіш: обляжуть  криницю  з  усіх  боків,  набирають  воду  в  пригорщі  й  смаковито  п’ють,  а  погамувавши  спрагу,  пустують, бризкають  одне  одному  в  обличчя,  лящать,  скільки  сили  в голосі  є,  потім  знову  прищухнуть,  дивлячись,  як  вода  в криниці  встоюється  і  сонячне  проміння,  зламане  в  ній,  перестає  гойдатись.  Ось  тоді  й  дізнаються  вони  від  Тоні-вожатої,  що  це  криниця  не  проста,  що  про  неї  ходить  легенда, начебто  дно  в  ній  подвійне,  і  коли  довго  дивитись  отак,  то можна  помітити,  як  на  дні,  між  отим  сторчма  накиданим камінням,  зблисне  уламок  шаблі  козацької.  Легенду  цю знає  вся  степова  округа,  і,  звичайно  ж,  у  неділю  жодна п’яна  компанія  не  мине  криниці,  щоб  не  повстромляти  в  неї свої  п’яні  пики,  —  їм  ввижається  там  і  шабля,  і  кинджал,  і що  завгодно...  Буває,  що  пробують  дістати  той  скарб,  бо ніби  ж  зовсім  близько  бачить  котрийсь  мочеморда  шаблю  і держак  інкрустований,  але  тільки  сягне  рукою  у  воду,  як дна  вже  й  нема  —  немає  ні  дна,  ні  скарбу.  Лежать  довкіл крйниці  малюки  і  дивляться  у  воду  так  пильно,  що  котромусь  із  них  справді  ввижається  ніж  гострий,  як  промінь,  і  криницею,  ніби  вже  бачиться  щось  блискуче  між  камінням, чи,  може,  то  тільки  сонячний  промінь  грає,  переблискує? Та  бачиться  їй  у  цій  чистій  криниці  і  те,  чого  її  малята  при найбуйнішій  фантазії  побачити  неспроможні  —  неспроможні  загледіти,  як  десь  із  самого  дна  крізь  хащі  наламаного  проміння  всміхається  до  їхньої  вожатої  славний  хлопчина,  той,  чиє  зображення  проблискувало  їй  із  води,  налитої в  гумове  колесо  в  степу  для  чайок...
 Буває,  що  набреде  тут  на  їхню  екскурсію  табірний  баяніст,  в  якого  на  голові  ціла  кучма  густої  вовни,  аж  дивно, чому  і  його  руно  не  стрижуть  у  таку  спеку,  баяніст  починає приставати  до  вожатої  з  різними  жартиками,  називає  її смаглявочкою,  а  вона  просто  в  вічі  баяністові  відрізує,  що соромно  йому  тут  байди  бити  поміж  дітьми,  коли  міг  би зерно  на  токах  вантажити  в  цей  час.
 —  Треба  ж  комусь  і  на  баяні  грати,  —  регоче  витівник,  а Тоня  йому  знову  на  це:
 —  В  мене  он  п’ятикласник  Петько  Шамрай  сам  на  баяні вміє  не  гірше  за  вас...  А  то  позвикали  гроші  розтринькувати  робіткомівські.  У  декотрих  літніх  таборах,  кажуть,  до того  дійшло,  що  не  тільки  баяністів,  а  й  сурмачів  наймають, щоб  дітлахів  уранці  будили...
 А  коли  рушають  до  табору,  то  баяніст,  гукнувши  дітям: «Ідіть,  ідіть!»  —  на  хвилинку  ще  затримує  Тоню-вожату  в очереті,  і  тоді  дітлашня,  нашорошена,  як  зайченята,  знову чує:
 —  Ех  ти  ж,  смаглявочка!
 І  вслід  за  цим  дзвінкий  виляск  і  схвильовані  слова  їхньої вожатої:
 —  Піди  спершу  тричі  вмийся!
 Тричі  вмийся,  себто  перед  тим,  як  лізти  цілуватись...
 І  навіть  малюкам  ця  формула  їхньої  вожатої  до  вподоби.
 А  що  ближче  до  кінця  тижня,  то  більше  Тоню  обіймає якесь  хвилювання,  в  суботу  з  самого  рання  вона  вже  сама не  своя,  бурхливо-радісна,  нестримно  кидається  з  обіймами  на  товаришок-вожатих,  і  вони  знають,  у  чім  річ,  вони дружно  просять  начальника  табору,  щоб  відпустив  Тоню на  вихідний  додому.
 Її  проводжають  надвечір  вожаті  й  дітлахи,  і  навіть  ті,  чиї труси  та  картузи  вона  вивішувала  на  дошку  роззяв,  стають трохи  сумні,  що  Тоні  завтра  з  ними  не  буде.
 До  радгоспу  звідси  далеко,  лежить  туди  курявна  степова дорога,  але  Тоня,  щоб  скоротити  свою  путь,  вирішує  брести  через  лиман  навпростець,  —  так  вона  зріже  кут,  дістанеться  того  берега  набагато  швидше,  а  там  уже  рукою подати  до  одного  з  їхніх  відділків...  Затока  тут  не  схожа  на ту,  що  біля  їхнього  радгоспного  степу,  ця  ще  мілкіша,  і  її справді  можна  перейти  вбрід.  Помахавши  на  розвітання рукою  дітям  та  вожатим,  що  вийшли  на  берег  її  проводжати,  Тоня  підбирає  платтячко  вище  колін,  і  вже  її  тугі  смагляві  ноги  сміливо  забродять  у  це  тропічне  море,  де  нагріта за  день  вода  тепла,  як  молоко,  і  гаряче,  йодисто  пахнуть водорості.  Густо  збиті  хвилею,  водорості  непорушно  киснуть  у  воді,  і  по  них  так  м’яко  ступати.  Далі  від  берега  море стає  прозоре  та  чисте,  дно  видніє  кожною  своєю  піщинкою,  а  потім  знову  з’являються  водорості;  вони  ростуть  по дну  якісь  мережані,  гіллясті  —  фантастична,  неземна  рослинність.  У  тій  затоці,  що  біля  радгоспу,  водоростей  зовсім  нема,  а  тут  їх  цілий  ліс  під  водою.  Сонце  просвітлює воду,  і  їх  видно  виразно,  до  кожного  стебельця,  наче  в акваріумі,  а  там,  де  Тоня  бреде,  вони  самі  розхиляються перед  нею,  розступаються,  наче  дають  їй  дорогу,  наче  знають,  куди  Тоня  спішить.  А  вона  таки  поспішає,  і  все  їй сміється  в  грудях,  і  серце  палає  жагою  зустрічі.  Не  те  що такий  лиман,  що  його  й  курка  перебреде,  а,  здається,  і  ціле море  перемайнула  б  вона,  щоб  тільки  швидше  бути  там,  де хлопчина,  з  усіх  найгарніший,  жде  її  на  побачення.  Скільки разів,  то  вранці  до  схід  сонця,  то  вечорами,  коли  табір  уже спить  після  відбою,  вона  припадала  вухом  до  приймача, вслухалась,  чи  не  озветься  часом  до  неї  Віталик,  чи  не скаже  хоч  слово,  може,  просто  назве  її  ім’я.  Адже  поки  не був  радистом  у  радгоспі,  то  радіохуліганив,  міг  через  ефір розшукати  її  в  степу,  покликати,  а  тепер,  коли  йому  доручили  весь  радіовузол,  він  сам  собі  не  дозволяє  такі  коники викидати.  Та  вона  й  не  сердиться  на  нього  за  це.  Не  сердиться,  що  мусить  сама  зараз  бігти  до  нього  на  побачення, адже  він  сьогодні  на  чергуванні  і  йому  не  можна  відлучатись.  В  усьому  вона  ставила  його  вище  за  себе:  в  його умінні,  в  роботі,  в  здібностях,  і  якщо  тільки  чим  вона  могла не  поступатись  перед  ним  чи  й  перевершувати  його,  то  це, мабуть,  своєю  любов’ю.  Брела,  дедалі  вище  підбираючи платтячко,  то  наспівувала,  то  голосно  сміялась,  що  вона вільна,  що  попереду  вечір  побачення  і  що  цілуватиме  її той,  хто  їй  любий.
 Затока  виявилась  ширшою,  ніж  видавалась  з  берега,  вже й  сонце  вишнево  пірнуло  за  степовим  берегом,  а  Тоні, нажаленій  медузами,  ще  далеко  було  добуватись  до  берега. Море  не  лякало  її  своєю  глибиною,  бо  вона  знала,  що комунівські  жінки,  які  працюють  по  той  бік  на  птахофермі, щоранку  перебродять  його,  отак  підібравши  спідниці...
Жінкам  з  птахоферми  тутешні  броди,  видно,  були  краще відомі,  а  Тоню  це  забите  водоростями  Саргасове  море піймало  так,  що  насилу  виплуталась,  а  в  другому  місці зненацька  шугнула  на  глибоке  —  опинилась  у  воді  по  шию. Однак  це  не  вибило  її  з  радісного  настрою,  тим  паче,  що далі  море  знову  мілкішало,  стало  під  руки,  стало  по  пояс,  і Тоня  побрела  швидше.  Жахалась  тільки,  коли  медузи  раз  у раз  торкались  у  воді  її  голого  тіла,  жалили  ноги,  тіло  від них  щеміло,  мов  від  кропиви,  але  не  так  жаління  Тоня боялась,  —  просто  були  їй  нестерпні  слизькі  доторки  цих морських  потвор.
 Місяць-молодик,  гострий  такий,  що  врізатись  можна, блискотів  на  чистому  небі,  і  вечірня  зірка  вже  поколихувалась  на  воді  перед  Тонею,  і  самотній  чабан  з  далекого берега,  схилившись  на  ґирлиґу,  дививсь,  як  шалапутна  ота дівчина  море  перебродить.
 ...Радгосп  уже  спав  міцним  трудовим  сном,  коли,  прослизнувши  мимо  сторожів  попід  парком,  перемайнувши вулицю,  дівоча  постать  нечутно  шаснула  до  Лукії  в  садок, шаснула  і  з  затаєним  подихом  стала  над  Віталиковою  розкладайкою,  у  мокрій,  що  аж  тіло  облипала,  одежі.  Здається,  дівчина  зовсім  не  дихала  якусь  мить.  А  тоді  ледь-ледь  торкнула  хлопця  за  вухо,  тільки  торкнула,  і  він  одразу кинувся,  підхопився,  наче  й  не  спав.
 —  Це  ти?
 —  Я.
 —  Мокра  вся,  —  він  потягнув  її  до  себе,  —  під  яким  це дощем  була?
 —  Через  лимани,  затоки,  через  усе  Чорне  море  до  тебе брела!  —  беззвучно  сміялася  Тоня.  —  Акули  на  мене  кидались,  спрути,  восьминоги...
 І  Лукія,  що  спала  на  веранді,  прокинулась,  їй  вчувся підозрілий  шерхіт  у  садку,  вгадалася  чиясь  стороння  присутність,  їй  навіть  почулося,  ніби  хтось  цілується  поблизу.
 —  Хто  там?
 Ніхто  не  відповів,  і  хоч  вранці  син  на  всі  її  допитки  тільки жартами  відбувався,  казав,  що  таке  може  й  приснитись,  але вона  була  певна,  що  вночі  хтось  був  у  садку,  не  тінь  же  то після  її  окрику,  пирснувши,  вишурхнула  із  садка.
 Цього  дня  кращі  робітники  відділків  на  двох  п’ятитонках вирушили  в  сусідній  радгосп.  Лукія  Назарівна  очолювала цю  поїздку.
 Лукія  на  грузовику  —  в  один  край,  а  син  на  мотоциклі  —  в  другий.
 На  мотоциклі  з  ним  Тоня,  вона  сидить  за  спиною  в  хлопця,  віє  на  вітрі  волоссям,  сміється  заохотливо.  В  руці авоська  з  бутербродами,  які  вони  з’їдять,  добре  накупавшись  у  морі;  вони  виберуть  собі  пустельний  берег,  де  будуть  тільки  вдвох,  купатимуться  й  розважатимуться  цілий день,  а  надвечір  Віталиків  мотоцикл  доставить  Тоню прямісінько  в  табір,  до  самого  її  намету.
 Мотоцикл  летить,  аж  підстрибом  іде.  Степ  в  усі  боки рівний-рівнісінький  —  під  колесом  тверджа  вікова.  Маючи під  собою  таку  твердь,  відштовхнувшись  від  неї  вогняними ракетними  бурями,  могли  б  звідси  набирати  розгін міжпланетні  кораблі,  а  поки  що  дикий  типчак  тут  свистить та  нехвороща  сріблиться,  вона  аж  вилягає  од  вітру  там,  де мчить  Віталиків  мотоцикл  по  своїй  степовій  орбіті.
Незмінне  все,  лінії  обрію  сталі,  один  він  летючо  рухається серед  цих  устояних  просторів,  тільки  він  своїм  гучним  деркотанням  порушує  цю  безмежну,  затоплену  сонцем  степову  тишу.  Шуліка  зорить  на  нього  з-під  неба  здивованим хижим  оком:  хто  ти  є,  що  не  заєць  і  не  сайгак,  а  мчиш прудкіше  за  них?  На  скаженій  швидкості  мотоцикл  перескакує  солончаки  та  видолинки,  аж  поки,  опинившись  серед  зарослих  молочаями  та  будяками  піщаних  кучугур, починає  там  чхати,  кашляти,  буксувати.  Вибравшись  на твердіше,  він  знову  переможно  деркоче,  мчить  уперед  так, наче  хоче  злетіти  в  повітря,  відірватись  од  цих  в’язких піщаних  кучугурищ  і  сягнути  блакиття  неба.  Хлопець упевнено  віражує  по  бездоріжжю,  шукає,  де  менше  піску, де  він  не  такий  сипучий,  а  пісок  дедалі  сипучіший,  і  мотоцикл  з  льоту  раз  у  раз  шугає  в  нього,  заривається  колесами,  трясеться  на  місці,  і  тоді  хлопець  каже  до  своєї  супутниці  трохи  винувато  й  захоплено:
 —  О,  дає!  Як  на  вібростенді!
 Тоня  сміється:
 —  Я  не  пробувала  вібростенда.
 —  Та  й  я  не  пробував.  А  тепер  уявляю!
 Оце  життя!  Щодуху  мчать  —  їм  весело,  буксують  —  їм весело  теж.  І  доки  мотоцикл  натужно  гребеться  в  піску, доки  моторчик  уперто  пирхає,  Тоня  нахиляється  до  хлопця,  зазирає  йому  в  вічі,  очі  її  повні  звабливих  блисків,  вони горять,  тануть  волого,  вони  аж  п’яні,  осоловілі  від  спеки  та припливу  дівочої  ніжності...  Ось  уже  й  мотоцикл  лежить боком,  судорожно  здригається  в  піску,  а  вони  стоять  над ним,  замлівають  в  обіймах.
 Море  десь  уже  близько,  але  його  їм  не  видно  з-поміж кучугур.  Зі  степу  було  видно,  а  тепер  синява  морська  зникла  за  сипучими  барханами,  за  молочаями  та  будяками,  що тільки  й  ростуть  у  цих  пустинних  місцях.  Сліпучими  скалками  іскриться  пісок,  жовтіє  молочай,  величезний  будяк гіллясто  розкинувся  на  кучугурі,  мов  колючий  кактус  десь на  межі  мексиканської  пустелі.  Мотоцикл  доводиться  брати  й  перетягувати  через  кучугури  саморуч.  Віталій  веде, Тоня  підпихає,  і  як  тільки  хлопець  знову  заводить  мотор, Тоня  вже  вихоплюється  на  своє  місце,  розпущене  волосся знов  розвівається  на  вітрі,  і  дівчині  знову  смішно  від  того, що,  тільки  рушиш,  вітер  раз  у  раз  заголює  тобі  коліна, облоскочує,  смішно  навіть  з  того,  що  бачить  вона  весь  час перед  собою  тонку,  ще  зовсім  хлоп’ячу  Віталикову  шию  з глибокою  ямкою,  що  буває  тільки  в  брехунців.  Він  і  не  з брехливих,  а  ямка  на  потилиці  наче  гніздечко,  хоч  перепелине  яйце  клади.  Але  ж  умілець,  веде,  як  бог,  —  такого мотоцикліста  пошукати!  Вперше  зазнає  Тоня  такої  швидкості,  такої  бурхливої  їзди  з  перешкодами,  але  їй  нітрохи не  боязко,  бо  ніякого  ж  нещастя  не  може  бути,  коли  такий водій  сидить  за  кермом!
 Ніби  підохочений  нею,  Віталик  бере  ще  один  піщаний бар’єр,  дає  рекордну  швидкість,  щоб  віраж  був  на  славу,  і віраж  такий  є,  і  тоді  ще  міцніше  обіймають  його  з-за  спини ласкаві  дівочі  руки,  і  він,  щасливо  хмеліючи,  почуває  всім тілом  доторк  її  пругких  груденят.
 Ривок  —  стрибок  —  віраж  через  останню  кучугуру,  і  ось вам  море,  ось  вам  його  синява,  тиха,  безмежна...
 Один-однісінький  серед  морської  рівнини  бовваніє крейсер  вдалині,  і,  крім  нього,  ніде  ні  паруса,  ні  катерка. Надбережжя  теж  пустинне,  безлюдне.  Тоня  вперше  тут, серед  цих  кучугур.  Бувала  біля  моря  не  раз,  але  там,  де воно  ближче  підходить  до  радгоспу,  а  не  в  цих  барханах, куди  й  батькові  отари  не  часто,  мабуть,  забродять.
 Лінивий  плюскіт  хвиль...  Суха  морська  трава  чорніє, шелестить  під  ногами:  де-не-де  риба  в  ній  смердить,  порозбухавши.  Навіть  і  Віталик  трохи  торопіє:  ні  живої  душі ніде.  Сліплячі,  остекленілі  простори.  Дрімота  у  всьому.
Ген-ген  по  берегу  біліє  самотня  рибальська  хатина,  де  кочує  рибальська  бригада  в  сезон  лову,  але  зараз  і  там  нікого не  видно.  Навіть  дядько  Сухомлин,  що  тижнями  байбакує тут,  стереже  рибальську  оселю,  зараз  не  вийшов  назустріч у  своїм  зім’ятім  капелюсі  та  в  брижуватих  штанях  з  одною засуканою  холошею,  не  вийшов,  не  став  придивлятись,  хто це  прибув,  хто  порушив  цю  благодатну  тишу  та  спокій...
Хіба  ж  не  дивна  ця  їхня  планета  Земля,  на  якій  є  десь  і  міста мільйоннолюдні  з  університетами,  з  хмарочосами,  з  підземними  палацами  метро  і  спортивними  аренами,  де  шаленіють  десятки  тисяч  болільників,  і  водночас  є  таке  тихе узбережжя,  де  дрімає  собі  під  козирком  черепиці  одна  рибальська  хатина,  та  первісно  простори  моря  синіють,  та чайка  сидить,  куняє  коло  води,  біла,  непорушна,  мов  з алебастру.
 А  втім,  є  ще  одне  тут  живе  створіння:  Сухомлинова  корова-ялівка  червоностепової  породи,  забрівши  далеко  від берега,  непорушно  застигла  серед  чистої  морської  синяви.
 Спека,  мабуть,  загнала  її  туди,  і  вона  стоїть  собі,  прохолоджується  у  воді  по  черево,  стоїть,  як  індійське  божество,  тільки хвостом  час  від  часу  обмахується  —  обмахується,  одначе, зовсім  по-нашому!
 Корова  зацікавлено  дивиться  з  моря  на  новоприбулих.
 —  Вона  ніби  хоче  щось  нам  сказати,  Віталику!
 —  Цілком  можливо.  Що  ти  нам  хочеш  сказати,  о  добра корово?  Ага!  Що  море  тут  пречудове!  Просто  як  у  тропіках.  Тільки  нема  коралових  рифів  у  ньому!  Ось  що  вона каже!
 —  І  ще  що?
 —  І  що  дядько  Сухомлин  подався  на  неділю  в  Рибальське.  І  що  ми  тут  з  тобою  одні  на  весь  берег!  Можемо  виробляти,  що  хочеш!  Свистіти,  співати!
 І  хлопець  затягує  на  всю  горлянку:  «Степ  і  степ,  один без  краю,  аж  до  моря  берегів!..»
 Тоня  заливається  сміхом,  їй  завше  подобається,  коли  він починає  отак  витівати  що-небудь.
 —  Ця  корова  так  дивиться,  ніби  й  справді  впізнала  тебе!
 —  Аякже!  Індійська  священна  твар,  вона  одразу  догадалася,  хто  перед  нею!  Перед  нею  —  йог!  Той,  що  вміє  на руках  і  на  голові!  Вельмишановна  корово!  Прошу  вашої уваги!
 І  вже  хлопець  стоїть  на  голові,  потім  на  руках  дибає берегом,  —  п’ятами  в  небо,  розчервонілим  обличчям униз,  —  а  Тоня,  сміючись,  повільно  ступає  слідом  по  м’якій  морській  траві,  веде  в  руках  мотоцикл.
 —  Годі,  годі!  —  нарешті  змилосердившись,  каже  вона,  і після  цього  юний  йог,  пружно  перекинувшись,  стає  на  ноги,  з  густо  прилитою  до  обличчя  кров’ю.
 —  Купаємось!  —  каже  Тоня  й  перша  починає  роздягатись.
 —  Я  зараз!  — скочивши  на  мотоцикл,  Віталик  гайнув  по берегу  до  рибальської  хати.
 І  незабаром  Тоня  бачила  вже,  як  він  по-хазяйськи  ходить  по  двору,  обстежує  Сухомлинове  кочовище.  Десь примаскувавши  мотоцикл,  хлопець  взявся  спихати  на  воду один  із  баркасів,  що  чорніли,  витягнуті  на  берег.
 До  неї  Віталик  підплив  уже  тим  баркасиком.  Підпливши,  глянув  на  Тоню  і  отетерів.  Ніколи  він  ще  не  бачив  її  роздягнутою.  В  одному  купальнику  стояла,  красуючись  на весь  берег  відкритим  дівочим  тілом,  струнким,  засмаглим.
Аж  лячно  хлопцеві  стало,  що  вона  така  гарна.  Невже  це він,  шкет,  цілував  ось  її?  Перед  ним  стояла,  усміхаючись, ніби  незнайома,  зовсім  доросла  дівчина,  а  він  перед  нею щулився  на  човні  у  своїх  трусенятах,  як  підліток,  зніяковівши,  знітившись  перед  блиском  її  оголених  плечей, оголених  ніг,  стрункого  дівочого  стану.  Присоромлений, він  безладно  веслував,  крутився  човном  на  місці,  а  Тоня, навпаки,  почувалася  зовсім  вільно,  стояла  й  закручувала перед  купанням  волосся  вузлом,  радісно  оглядала  це  синє роздолля.
 —  Ось  куди  б  наш  табір!
 Закрутивши  волосся,  кинулась  у  воду,  сягнисто  побігла по  ній  далі  від  берега,  на  глибше.  Віталій  галаснув  і,  стрибнувши  з  човна,  теж  побіг  за  нею,  наздогнав,  і  вони  стали бризкатись,  борюкатись.  Тоня,  впіймавши  його,  надавила, стала  нагинати  у  воду,  як  хлопчака,  що  не  хоче  купатись,  а він,  випручавшись,  намагався  побороти  її,  натопити,  але тут  було  ще  мілко,  і  вони  кинулись  навперегінки  бігти  далі в  море,  і  Віталій,  підстрибуючи,  гукав:
 —  Глибини!  Глибини!  О  море,  дай  нам  глибини!
 А  по  якомусь  часі  обоє  лежать  уже  горілиць  на  воді заспокоєні,  Тоня  бризкає  спроквола  водою  вгору,  і  звідти, з  синього  неба,  білосніжні  перла  летять,  справжнісінькі перла,  блискучі,  осяйні,  оті,  що  їх  добувають  хлопчаки  в тропічних  водах  з  морського  дна...  Хотів  би  і  він  Тоні  таке що-небудь  добути,  щоб  вразити  її,  щоб  вона  аж  ахнула  від захоплення.  Тільки  що  ж  він  їй  тут  добуде?
 —  Тоню,  хочеш...  мідій?
 —  А  де  ти  їх  дістанеш?
 —  У  мене  в  човні  є...
 Незабаром  вони  вже  біля  човна.  Постукуючи,  мов  горіхами,  хлопець  насипає  з  банки  перед  Тонею  мідій,  що  він прихопив  їх,  видно,  в  Сухомлиновій  хаті,  сам  їх  розлущує і  подає  дівчині,  подає  трохи  аж  недбало,  щоб  вона  не  зазнавалась,  не  подумала,  що  він  так  уже  біля  неї  упадає  та прислуговує.  А  Тоня  й  сама  вміє  розлущувати,  і  яку  розлущить,  то  одразу  подає  Віталикові,  їй  подобається  ця  жіноча роль  —  бути  уважливою  й  послужливою.
 —  А  корова,  глянь,  Віталику,  очей  з  нас  не  зводить...Чи вона  теж  зголодніла?
 —  Хай  пасеться,  море  велике.
 —  Трапляється  іноді,  що  паші  хоч  у  морі  шукай.
 —  А  знаєш,  скільки  пропадає  в  морі  харчу  такого,  що худоба  аж  облизувалась  би...  Про  філофлору  чула?  Це  оті червоні  водорості,  що  їх  повно  в  лиманах...  Доведено,  що борошно  філофлори  підвищує  надої.
 —  Дядько  Сухомлин  своєю  ялівкою  довів?
 —  Наука  довела.
 —  Що  ж,  треба  було  цього  добра  й  на  наших  фермах спробувати...  Та  тільки,  хто  хоче  пити  молоко,  фуражу залишав  би  вдосталь,  —  сказала  Тоня,  і  в  голосі  її  з’явилась  батькова  різкість.  —  А  то  влітку  весь  фураж  під  мітлу виметуть,  щоб  перевиконати  план,  а  навесні,  коли  худоба дохне,  знову  давай  фураж  назад,  із  станції  тягачами  його по  багнищі  тягнуть...
 Мідії  мідіями,  а  бутерброди,  видно,  краще:  Тоня  й Віталій  заодно  беруться  й  за  них,  а  потім  пливуть  оглянути Сухомлинів  причал  та  рибальську  хату-пустку,  де  восени рибалки  ночують,  ховаються  від  непогоди,  а  зараз  на  їхніх нарах  пилюки  на  палець.  Купою  в  кутку  драні  рибальські сітки,  на  столі  Сухомлинові  об’їдки,  все  навстіж,  все відкрите,  і  Віталій  тут  почуває  себе,  як  господар,  бо  дядько Сухомлин  йому  далекий  родич  по  батьковій  лінії,  і  хлопець давно  підтримує  з  ним  контакти.  Навесні  він  допомагав дядькові  тут  смолити  човни,  трудився,  вигладжував  по  них смолу  паяльною  лампою,  за  що  й  має  дозвіл  користуватись Сухомлиновим  флотом.
 —  Цікаво,  скільки  буде  від  нас  до  того  дредноута?  — запитує  Тоня,  задивившись  на  судно,  що  бовваніє  в  затоці.
Віталій  тамує  посмішку  зверхності.  Для  Тоні  то  загадка, тайна,  а  він  уже  побував  там,  одним  з  перших  ходив  на судно  рубати  свинець  та  добувати  різні  радіодрібнички.
 —  Хочеш,  Тоню,  махнем  туди?  Ми  вже  з  хлопцями  гостювали  там...
 Тоню  це,  видно,  зацікавило.
 —  Але  ж  туди,  мабуть,  далеко?  Скільки  буде  кілометрів?
 —  На  кілометри  не  знаю,  а  на  милі...  миль  десять  буде.
 Дівчина  вагається,  але  по  всьому  видно,  що  їй  дуже кортить  глянути  на  те  дивовисько  зблизька.
 —  Так  Сухомлин  за  човна  ж  лаятиме,  —  каже  Тоня  невпевнено,  коли  вони  вже  бредуть  до  човна,  що  легко  лежить  на  воді,  іскриться  смолою.
 —  За  це  не  турбуйсь,  —  заспокоює  Віталій.  —  «Мой  дядя  самьіх  честньїх  правил...»  Він  зараз  далеко  звідси  і,  з усього  видно,  повернеться  не  скоро...  Коли  не  на  хрестинах,  то  на  іменинах...  А  до  того  ж  у  нас  із  ним  уже  як  при комунізмі:  твоє  —  моє,  моє  —  твоє...  Бачила  б  ти  цю  посудину  навесні...  Не  човен,  а  кістяк  мертвий  лежав  у  кучугурах,  дірками  світив,  розсохся  зовсім,  а  ми  з  хлопцями  взялись,  вдихнули  в  нього  живу  душу,  і,  бачиш,  який  фрегат! Вузлів  сім  дає!
 І  хоч  Тоня  уявлення  не  має,  що  то  за  вузли,  однак  це  її чомусь  переконує  остаточно,  і  вона  каже  з  рішучістю:
 —  Згода.  Пливем!
 І  ось  вони  в  човні.
 —  Покидаємо  берег  планети,  —  беручись  за  весла,  каже Віталик,  і  ці  жартома  кинуті  слова  довго  бринять  Тоні,  що невідривно  стежить,  як  віддаляється  берег  від  них.
 —  А  як  же,  Віталику,  мотоцикл?
 —  Я  його  там  прикрив  у  комірчині  старими  сітками.  Сто літ  лежатиме!
 Віталій  працює  щиро,  аж  ребра  ходять  здухвинами,  кочети  ритмічно  поскрипують,  а  Тоня  сидить  на  носі,  обсихає,  підставивши  сонцю  свої  засмаглявлені  плавко  стікаючі плечі.  Видно,  їй  так  і  хочеться  звернутися  до  світила  давньою  дівчачою  примовкою:  освіти  мене,  сонечко,  любощами,  милощами,  добротою,  красою...  Берег  з  відстані  все більше  можна  охопити  оком.  Що  далі  вони  в  море,  то  ширше  відкривається  їм  надбережжя  своїми  безлюдними  кучугурами,  чабанськими  пасовищами,  радгоспними  далекосяглими  землями.  Ніде  ні  деревця.  Центральної  садиби  не видно,  лише  рибальська  обшпугована  вітрами  хата  самотньо  блищить,  черепиця  на  ній  тече  в  мареві,  горби  кучугур облягають  її,  ніби  алігатори,  ніби  створіння  якісь  палео зойські,  що,  дрімаючи,  гріють  на  сонці  свої  жовтаво-бурі спини.  А  священна  Сухомлинова  корова  ще  й  досі  непорушно  стоїть  у  воді,  тільки  вона  вже  стала  маленькою  і дедалі  все  меншає,  стає  ніби  прозорою,  втрачає  свою  червоностепову  масть...  Віталій  дивиться  вперед,  не  спускає ока  з  далекого,  ледь  мріючого  судна,  щоб  тримати  курс просто  на  нього.  Він  уже  обливається  потом,  тернеться щокою  об  плече  і  знов  гребе,  Тоню  аж  жаль  бере,  що  він так  старається,  а  його  ще  й  ченчики  жалять,  і  вона  пробує помахом  руки  відганяти  їх,  бо  ці  ченчики  та  сірі  степові мухи  з  чабанських  кошар  теж  пливуть  разом  з  ними,  зі степів  —  у  блакитніючу  безвість.
 —  Може,  тебе  змінити,  Віталику?
 —  Сиди,  —  відказує  він.  —  Я  вгощаю.
 Тоню  захоплює  оця  таємничість,  оця,  сказати  б,  поезія таємничості,  в  яку  вони  поринають.  Велика  вода,  суцільна голубінь  уже  оточує  їх.  Ніжно-блакитна  шовковість  небес  і густо  насичена  синню,  аж  чорна  просторінь  моря  —  такий їхній  світ,  серед  якого  їм  чути  тільки  похлюпування  хвилі та  ритмічні  поскрипи  кочетів.
 Море,  що  спершу  прозоро  просвічувало  аж  до  дна  і зверху  було  веселим,  синім,  щодалі  мовби  темнішає,  важчає,  воно  стає  і  справді  аж  чорним,  можна  зрозуміти,  чому його  так  назвали.  І  хвилі,  всюди  хвилі,  хвилі...  Біля  берега їх  майже  не  було,  а  тут  ними  все  море  вилискує,  перевертається,  і  лише  де-не-де  над  їхньою  темною  синню  чайка сліпучо  зблисне  в  повітрі  або  з’явиться  з-поміж  хвиль  самотній  нирок,  виткнеться  чорною  голівкою  і  знов  пірне, зникне,  як  і  не  було  його.  Берег  віддаляється.  Уже  ледь біліє  черепицею  рибальська  хата,  їхній  береговий  орієнтир.  Хата  ніби  вгрузла  в  землю  —  її  черепиця  тепер  лежить просто  на  самій  поверхні  моря,  на  самій  смузі  обрію.  Аж трохи  страшнувато  стає  Тоні,  що  вони  опинилися  так  далеко,  що  вже  віддалені  від  берега  такою  відстанню.  А  судно ніби  й  не  наближається.  Важка  його  непорушність,  як  і раніш,  далеко  темніє  серед  густої  сапфірної  синяви.
 —  Моторкою  ми  до  нього  швидко  добирались,  —  каже Віталій,  ніби  виправдуючись.
 Зрушився  вітерець.  Віталій  склав  весла,  взяв  на  дні  човна  шмат  якоїсь  замазученої  брезентини,  розіпнув,  і  та  брезентина...  враз  стала  вітрильцем!
 —  Дми,  дмухай,  товаришу  бриз!  —  примовляє  Віталій, направляючи  парус  куди  слід.
 Певне,  і  йому  трохи  не  по  собі,  що  вони  так  далеко зайшли  в  море,  але  він  старається  нічим  не  виявляти  своєї внутрішньої  стривоженості,  і  його  самовладання  заспокоює  Тоню.
 —  З  берега  здавалось,  ніби  зовсім  близько,  —  каже  вона,  —  а  ось  пливемо,  мабуть,  більше  години,  а  судно  ще  де.
 Хлопець  киває  на  вітрильце:
 —  З  цим  ми  швидко  до  нього  добіжимо.
 Солом’яна  чуприна  спадає  хлопцеві  на  лоб,  а  очі  з-під неї  зірко  примружені  весь  час  уперед,  щоб  не  збитися  з курсу,  не  відхилитись  від  судна  вбік.
 Степ  уже  ледве  мріє.  Вітрильце  їхнє  таке  маленьке,  що навіть  якби  хто  й  був  у  цей  час  на  узбережжі,  то  навряд  чи помітив  би  їх  звідти.
 —  Назад  нам,  Віталику,  доведеться  проти  вітру?
 —  За  це  не  турбуйсь.  Моряка  парус  додому  сам  несе!
 Він  жартує,  але  без  посмішки.  Невже  і  йому  трішки- трішки  лячно,  тривожно?  Ще  б  пак,  така  темна,  лиснюча стихія  стелиться  навкруги.  Мабуть,  таке  ж  небо  в  космосі чорне,  непривітне  і,  мабуть,  так  само  має  в  собі  щось  затаєно-грізне.  Темна  морська  просторінь  навкруг,  і  тільки сонце  високе,  зенітове  смажить  їх  з  пустельною  нещадністю,  ллється  на  плечі  дівчині,  на  голі  Віталикові  реберця,  на  густу  темно-синю  гладінь.
 Судно,  однак,  таки  ближчає.  Сіре  залізне  громаддя  його низько,  розлого  сидить  на  воді,  осівши  майже  по  ватерлінію.  В  небі  мережкою  щогла  прозорчата,  похилена набік,  наче  після  урагану.  З  висоти  щогли  спадає  якийсь обірваний  трос,  теліпається  в  повітрі.
 Уже  й  Віталій,  і  Тоня  не  зводять  з  судна  очей.  Для  Тоні воно  повне  таємничості.  Все  воно  —  недоступність  і  заборона.  Ось  на  борту  на  брудно-сірому  тлі  видніє  білий  знак, якісь  літери  і  цифра  18...  І  це  як  шифр,  як  таємниця  нерозгадана,  відома  небагатьом.  Підпливши  майже  до  борту,  вони  зненацька  почули  шум  крил,  птаха  звідкись  сполохну ли.  Ґава!  Самотня  чорна  ґава  замахала  в  повітрі  крильми, кілька  разів  крикнула  голосом  бюрократа,  кружляючи  над своїм  залізним  гніздовищем.  І  де  вона  взялась  тут?
 Віталій  і  Тоня,  поодягавшись,  примовклі,  внутрішньо напружені,  йшли  вже  побіля  судна.  Все  грізне,  похмуре,  від усього  віє  запустінням.  Почуття  незаконності,  недозволеності  свого  вчинку  весь  час  не  покидало  їх.
 Облуплена,  облущена  фарба  бортів.  Іржа...  Ілюмінатори засновані  павутинням.  В  одному  місці  Віталій,  впритул приставши  до  борту  і  взявши'  це  махинище  на  абордаж, звелів  Тоні  хапатися  й  лізти  вгору,  на  палубу.  Вона  мить роздумувала,  потім  міцно  вхопилась  рукою  за  гарячий, напечений  сонцем  ілюмінатор,  —  цей  теж  був  заснований павутинням!  —  а  далі  допомогло  їй  якесь  іржаве,  нестерпно  розпечене  скоб’я,  і  не  встиг  Віталик  дати  їй  пораду,  як вона  була  вже  на  палубі.
 Залізо  палуби  вогнем  опекло  їй  босі  ноги  —  вона  мусила аж  пританцьовувати.
 —  Пече,  ой  пече!  —  гукнула  вона  вниз  Віталієві,  що вовтузився  там,  складаючи  парус  і  примуцьовуючи  човна.  —  Кинь  мені  босоніжки!  Ой,  мерщій!  Я  тут  як  на  сковороді!
 У  відповідь  на  її  слова  полетів  на  палубу  один  босоніжок,  потім  другий,  а  невдовзі  з’явилася  із-за  борту і солома  Віталієвого  чубчика  та  худенькі  плечі  в  самій майці,  —  з  його  появою  Тоні  стало  веселіше.  Почуття  гостре,  нервово-лоскотне  охопило  її.  Хотілось  сміятись,  кричати,  галасувати  так,  щоб  усі  почули!  їхній  крейсер.  Двоє їх,  закоханих,  на  великому  військовому  судні.  Ніколи,  звичайно  ж,  не  було  на  цьому  військовому  судні  закоханої пари,  щоб  отак  —  він  і  вона.  Лунали  тут  суворі  команди, накази,  радіопозивні,  номери,  шифри  —  все  службове,  суворе,  владне.  А  тепер  їм  скорилося  це  тисячотонне  сталеве громаддя,  на  сталевій  арені  могутніх  рудо-іржавих  палуб владарює  сміх,  їхня  любов!
 —  Подумати  тільки,  куди  ми  з  тобою  забрались,  —  сказала  Тоня  радісно-тремтячим  голосом.  —  На  справжньому крейсері!
 —  Навіть  якщо  це  есмінець,  —  посміхнувся  Віталик,  —  то  й  тоді  ти  не  повинна  розчаровуватися...  Справжня  гора. Залізний  Арарат  серед  моря.
 Вода  була  десь  далеко  внизу,  і  човник  їхній  там  поколихувався,  такий  малюсінький,  а  судно  здіймається  над  морем  справді  мов  залізна  гора,  сталева  скеля,  їхній  сталевий острів.
 —  Яке  ж  величезне!
 Тоня  сама  не  своя  від  хвилювання.  Її  охоплює  лихоманкове  збудження,  проймає  дрож,  трепет,  що  це  вони  з  Віталиком  аж  куди  добулися,  одні-однісінькі  опинилися  на цьому  острівці,  як  робінзони,  де  їх  оточує  химерне  залізне бескеття...  І  Віталик  теж  помітно  схвильований,  голос  його хрипко  зривається,  коли  він  що-небудь  пояснює  Тоні.
 Тріщить  під  ногами  серед  іржі  щось  біле,  блискуче.
 —  Дивись,  Віталику,  —  кидається  на  блискітки  Тоня,  — скляна  вовна  якась!
 —  Не  вовна  це!
 —  А  що?
 —  Скловата.  Ізоляційний  матеріал.  Бачиш,  з  розпоротих  обшивок  вилазить?
 —  Яке  ж  біле  та  гарне.
 Вона  бере  пучечок  цього  дивного  матеріалу  в  руки,  але Віталик  застерігає:
 —  Не  бери!
 —  Чому?
 —  Руки  потім  довго  щемітимуть...  Воно  в  тіло  в’їдається.
Зате  ізоляція  з  нього  —  клас...  І  в  огні  скловата  ця  не горить.
 —  Ні,  трошки  я  обов’язково  візьму,  в  таборі  моїм  дітлахам  покажу,  —  і  Тоня,  як  пір’я  з  подушки,  жваво  висмикує  із  розпоротої  обшивки  зовсім  чистої  скловати,  білої,  як перший  сніг.
 Де-не-де  палуба  повидималась  якимись  пухлинами, видніються  на  ній  якісь  пробоїни,  рвані  дірки,  люки,  зяючі в  прірву...  Біліє  розсипане  вапно,  крихти  цементу...
 —  Що  це  за  дірка,  Віталику?
 —  Та  це  так...
 Він  чогось  мнеться,  щось  не  доказує.  Бере  крихту  цементу  й  нюхає  навіщось.  Потім  каже  жартома:
 —  Полігоном  пахне.
 Тримаючи  одне  одного  за  руки,  вони  зазирають  у  пробоїни,  в  моторошну  глибінь  темних  трюмів,  де  вода  блищить  маслянисто,  почувається,  що  важка  вона  там,  застояна,  з  нафтою  чи  соляркою.
 —  А  рейки  для  чого?
 —  Мабуть,  по  них  підвозили  торпеди  на  вагонетках.  Бачиш,  он  рами  на  кормі?  Не  інакше  —  торпеди  з  них  запускали...  Це  ось  лебідка...  Брашпиль...  А  це  ось  круг  для гармати.  —  Вони,  все  ще  тримаючись  за  руки,  розглядають круг  масивний,  металевий.  —  Гармата,  видно,  могла  повертатись  у  гнізді  на  триста  шістдесят  градусів,  у  всі  кінці неба,  —  пояснює  Віталик,  і  вони  мимоволі  обоє  глянули  в небо,  де  вже  ґава  не  каркає,  а  тільки  ясніє  чиста  голубінь зеніту  та  сліпучо  палає  якесь  незвичайне,  майже  космічне сонце.
 Ідуть,  неквапом  оглядають  кубрики,  ці  гарячі  металеві клітки,  в  яких  жили  колись  люди,  жили,  як  у  сейфах.
Залізо  й  залізо.  Покарьожені  труби,  обрізані  проводи,  залізний  хаос.  Віталій  пускається  першим  у  цей  хаос,  де  по трапах,  а.  де  й  без  трапів  перелазить  дедалі  вище  з  однієї палуби  на  другу,  а  Тоня  пробирається  за  ним,  стараючись, мов  слухняна  альпіністка,  повторювати  кожен  його  рух. Хлопець  час  від  часу  застерігає,  бо  тут  обачність  понад  усе, тут  легко  зірватись...
 —  Як  ми  вже  високо!  —  Голос  дівчини  аж  трепеще.  — Глянь,  де  вода!
 —  Ого-го!  Далеченько.
 Рубка  радиста,  де  були  жмуття  проводів  —  одні  корінці стирчать,  хтось  пообрізував  чепурно.
 —  Тут  і  я  поживився,  —  всміхається  Віталій.
 Тоня  вже  студить  на  руки,  вони  справді  починають щеміти  від  цього  ізоляційного  скла,  що  й  тут  по  палубі всюди  валяється  купами,  а  в  салоні  аж  за  шию  сиплеться блискучими  скалками  із  прорваної  обшивки.  Це  ж  тут,  у салоні,  сиділи  командири,  бесідували,  щось  вирішували...
Все  порвано,  порубано,  обдерто.
 Досі  дівчина  не  може  як  слід  збагнути,  що  сталося  з  цим судном,  чому  воно,  власне,  тут?  Сіло  на  мілину?  Але  ж  тут  глибінь! Привели  моряки  його,  кинули  в  затоці  й  пішли
собі,  розпаливши  апетити  степових  шукачів  пригод.  Не тільки  такі,  як  Віталик,  тамували  тут  пригодницьку  свою жагу,  а  й  серйозні  дядьки  —  голови  колгоспів  —  брали участь  у  роздяганні  цього  сталевого  велетня,  тягли  звідси різне  обладнання,  труби,  а  декому  нібито  дістались  навіть цілком  справні  електромотори...  Зараз  тягти  вже  нічого, дух  запустілості  панує  всюди,  павуки  переснували  все  судно  —  і  де  їх  стільки  набралось,  як  залетіли  вони  з  степів  аж сюди  на  тонких  своїх  павутинках?
 Суднові,  здається,  не  буде  краю.  Не  з  берега,  тільки  тут, зблизька,  можна  впевнитись,  яке  ж  воно  величезне.  Ідеш крізь  його  залізні  буреломи,  спускаєшся  то  нижче,  то  вище («то  знову  гарматні  відсіки...  а  то  шлюп-балки!»),  потрапляєш  у  якісь  глухі  закутки,  залізні  закапелки,  в  напівтемряву,  то  знову  перед  тобою  грає  сонцем  іржава  сталева  стіна,  який-небудь  камбуз,  або  клюз,  або  відсік,  серед яких  Віталик  тільки  й  може  зорієнтуватись.  Тут  треба  оглядатись  добре,  щоб  не  оступитись  та  не  зірватися  сторч головою  вниз,  в  оте  залізне  провалля,  де  вглибині  безодня, в  плямах  нафти  чи  солярки  мертво  лисніє  застояна  брудна вода.  Залізні  колодязі  —  мертві,  непорушні,  а  за  бортом море  мерехтить  неспокійними  хвилями,  хлюп  та  хлюп...
Знов  лабіринт  якийсь,  рвана  бляха  (видно,  вирізав  хтось лист  алюмінію),  і  раптом  з  напівтемряви  напис:  «...затопление  открьівать  только  при  фактическом пожаре».  Що  це  означає?  Як  це  розуміти?  Таємниче, мов  ієрогліфи!  А  хтось  же  писав,  когось  воно  стосувалось, для  когось  цей  напис,  може,  важив  безмежно  багато...  А  це що  таке:  «Б  о  е  в  о  й  ч  е  т  ы  р  е...»?  Вся  вона,  ця  іржава сталева  гора,  повна  загадок,  таємниць,  умовних  знаків, яких  навіть  Віталикові  не  розгадати.
 —  Чи  буде  йому  коли-небудь  кінець?  —  питає  Тоня, натрапляючи  знов  на  неводи  павутиння,  обминаючи  в півтемряві  якесь  залізяччя.
 —  Ми  ще  й  половини  не  пройшли,  —  Віталій  виводить Тоню  з  темного  закутка  на  світло,  показує  вгору  на  щоглу:  —  Оце  була  б  антенка,  правда  ж?  Оця  б  ловила!
 Корабельна  щогла  самим  своїм  виглядом  здатна  викли кати  в  хлопцевій  душі  хвилювання.  Приковує  зір,  надить простором  океанів,  гуде  бурями  далеких  широт...  З  щогли звисають  обривки  тросів,  проводів,  що  їх,  видно,  ніхто  не міг  дістати,  а  ще  вище...
 —  Віталику,  то  що  за  шпаківня,  аж-аж  там  угорі?
 —  Там  стояв  сигналіст.  Впередсмотрящий...
 —  Як  туди  забратися  —  просто  не  уявляю.
 —  А  ти  уяви...
 Не  встигла  Тоня  схаменутись,  як  Віталій  уже,  мов  тарзан,  чіпко  подряпався  вгору  і  вгору  по  стрімкій  щоглі,  по уламках  трапа  на  ній.  У  Тоні  аж  серце  холонуло,  щоб  він  не зірвався,  а  він,  по-мавпячому  деручкий,  забирався  дедалі вище,  аж  поки,  досягши  свого,  випростався  на  щоглі,  на  тій недосяжній  для  Тоні  височині  —  десь  аж  у  небі!  Вітер гойдав  уже  нижче  нього  обривок  сталевого  троса,  а  хлопець  стояв  усміхнений  —  усміхався  звідти  Тоні:  ось,  мовляв,  де  я,  твій  Впередсмотрящий...
 І  раптом  Віталій  тривожно  застиг,  задивлений  кудись  у море,  до  чогось  там  прикипів  поглядом,  і  Тоні  здалося,  що хлопець  зблід,  що  на  обличчі  йому  відбився  жах.  Тоня  теж глянула  в  той  бік  і  серед  темряви  невпокійливих  хвиль побачила...  маленький  чорний  каючок!..  Хтось  пливе! Хтось  підпливає  до  них!  Вона  навіть  хотіла  гукнути Віталикові:  «Хто  то  пливе  до  нас?»  —  але  в  каюку  не  було нікого,  він  був...  порожній!!!  Мов  у  недоброму  сні,  якимось навіть  недоречним  видався  він  —  без  нікого!  без  живої душі!  —  серед  безмежжя  хвиль!..  Чорна  блискавка  вдарила в  мозок,  приголомшила  Тоню  страшною  догадкою...  Помилки  бути  не  могло:  та  маленька  смоляно-чорна  посудинка,  що  її  першої  миті  Тоня  й  не  впізнала  без  вітрильця,  то  ж їхній  був  човник,  їхній  баркасик,  що  його  тепер  вітер  тихо, ледь  помітно,  але  безповоротно  відгонив  у  море.  Далі й далі  від  них  —  у  відкрите  море!..
 Звечоріло,  зірки  проступили  на  небі,  а  десь  у  степу  теж, мов  зірки,  спалахнули  крізь  імлу  вогники:  то  їхня  Центральна,  що  вдень  її  звідси  було  майже  не  видно,  зазоріла вечірніми  вогнями.  Тепер  стало  ще  відчутніше,  як  далеко вони  від  степу,  яка  непереходима  далеч  води  й  темряви  відділяє  їх  від  берега,  від  усього  попереднього  життя.  Ледь-ледь  блискотять  із  імли  степові  їхні  зорі...
 А  вони  сидять,  мов  сироти,  позіщулювались  у  затишку бойової  рубки,  їм  холодно  —  залізо  судна  після  денної  спеки  дивовижно  швидко  нахолонуло.  Тоня,  наплакавшись, схилилася  Віталикові  головою  на  коліна  і,  здається,  заснула,  змучена  переживаннями,  а  Віталій  не  зводить  очей  з берега,  намагається  розібратись  в  усьому,  що  сталось.  Він, він  винен  у  всьому!  І  нема  тобі  виправдань,  не  шукай  їх. Підбив,  заманив  Тоню,  яка  з  своєю  любов’ю  так  довірливо пішла  за  тобою,  а  ти...  Куди  ти  її  завів?  У  пастку,  в  смертельну  пастку  завів,  сам  не  бажаючи  того,  однак  і  не  сказавши  дівчині  всієї  правди,  не  застерігши,  що  її  тут  жде.
Жде  вас  обох  тут  не  тільки  голод  і  спрага.  Звичайно,  він готовий  ради  Тоні  на  подвиг,  на  самопожертву,  але  за  таких  обставин  навіть  це  не  потрібно  —  кому  тут  потрібна твоя  самопожертва?  Твоя  провина  перед  нею  безмежна,  і хоч  Тоня  це  розуміє,  але  з  уст  її  не  зірвалося  жодного  слова докору,  і  вона  й  зараз  тулиться  до  тебе  в  довірі  з  любов’ю, сльозами,  ніжністю.  Від  природи  тобі  дано  бути  дужчим  за неї,  виявляти  мужність  та  винахідливість,  а  ти  ось  тепер нічого  не  спроможний  зробити.  Може,  таки  треба  було стрибати  за  борт  і  кинутись  вплав  за  човном  уздогін?  Та коли  він,  мало  не  зірвавшись,  в  одну  мить  скотився  зі  щогли  й  кинувся  був  до  борту,  сама  ж  Тоня  схопила  його  за руку:
 —  Не  смій!  Не  доженеш!  Утонеш!
 Таки  ж  правда:  тут  і  майстер-розрядник  з  плавби  навряд чи  б  догнав.  Згодом  лише  якось  жалібно  запитала:
 —  Як  же  це  ти,  Віталику?  Чому  ж  не  прив’язав?
 Він  щось  неврозумливе  белькотів  на  виправдання,  що ніби  ж  прив’язував,  ніби  ж  накинув  кінець  вірьовки  петлею на  якийсь  гак,  не  сказав  Тоні  лише  того,  що,  коли  проробляв  це,  увагу  його  відволікли  саме  її  босоніжки,  які  треба було  кинути  їй  на  палубу...
 Рятівний  каючок,  власноруч  просмолений  з  допомогою паяльної  лампи,  пішов  і  пішов  тепер  на  морські  простори,
гуляє  десь,  як  просмолена  запорозька  байда.  Може,  десь аж  у  Дарданеллах  переймуть  малу  твою  байду-невдаху,  а
 вона  порожня,  в  ній  нікого,  тільки  хлоп’яча  сорочка  та авоська  з  недоїдками  бутербродів,  загорнутих  у  райгазету «Вільний  степ»...
 Дивно,  але  в  нього  таке  враження,  ніби  якась  зла  фатальна  сила  штовхала  його  сюди  і  ніби  все  його  попереднє життя  було  тільки  готуванням  до  того,  щоб  зробити  цей жахливий  крок...  Буває  ж  так,  що  людину  тягне,  настійливо  тягне  кудись,  —  ось  так  і  його  тягнуло  з  тої  миті,  як тільки  він  побачив  із  степу  це  бойове  судно,  що,  мов  сама його  мрія,  силуетно  застигло  на  обрії...  Кажуть,  що  є  люди, яким  важко  перебороти  в  собі  невідворотне  бажання  кинутись  з  висоти  —  безодня  їх  втягує,  заманює,  владно  диктує кинутись  униз,  у  безвість  прірви,  щоб  спробувати  ніколи  не пробуваного...  І  хто  знає,  чи  не  зринає  часом  подібний потяг,  подібний  порух  свідомості  в  того,  хто  має  доступ  до тієї  найстрашнішої  кнопки,  про  яку  має  звичай  розбалакувати  Гриня  Мамайчук.  Хто  дослідив  той  хаос  підсвідомості, ті  первісно  темні  глибочезні  надра,  де,  можливо,  якраз  і зароджуються  вулкани  людських  вчинків?  Чи  так  уже  далекий  від  істини  той  же  Гриня,  який  твердить,  що  вади людської  природи  вічні,  що  ми  справді  гріховні  від  народження  й  несемо  печать  гріха  на  собі?  Колись,  на  світанку життя,  гріховна  спокуса  нібито  погубила  легендарних  Адама  і  Єву;  хай  це  вигадка,  хай  Віталій  у  такі  речі  не  вірить, але  знову  ж  бо  —  хіба  тільки  пустощами,  легковажним своїм  хлоп’яцтвом  пояснить  він  і  свій  сьогоднішній  вчинок?  Хіба  ж  Тоня,  його  розумна,  твереза,  практична  Тоня, сіла  б  із  ним  в  каючок,  якби  і  її  не  штовхало  оте  чортеня зваби,  бісеня  спокуси,  жадання  торкнутися  чогось  заборонного,  що  досі  було  за  сімома  печатями?  Чи,  може,  в цьому  якраз  і  є  сила  людини,  її  дар,  може,  без  цього  не знала  б  вона  виходу  ні  в  небо,  ні  в  океан  і  ніколи  нічого  не відкрила  б.
 Тоня  здригається  нервово  в  дрімоті,  ніби  її  ще  й  зараз стріпує  внутрішній  невиплаканий  плач.
 Поменшало  вогнів  на  Центральній,  —  спати  потроху вкладається  радгоспна  столиця,  бо  рано  починати  їй  завтра свій  трудовий  день.
 Майнуло  над  степом  віяло  світляне,  переміщаючись  у просторі,  —  чи  кінопересувка  помчала  з  відділка  після  сеансу,  чи,  може,  з  «Чабана»  повертається  мати  з  робітниками  додому?  При  самій  згадці  про  матір  душа  Віталикова  наливається  болем.  Прийде  вона  додому,  а  сина нема,  і  завтра  не  буде,  і,  може,  не  буде  й  ніколи!  Як  він непрощенно  завинив  перед  нею!  Виплаче  очі  за  сином.
Уява  малює  її  вбитою  горем,  зістареною,  самотньою...  Ось як  вчинив  з  нею  він,  її  надія,  її  опора.  Будуть  розшуки, буде  тривога,  але  кому  спаде  на  думку  шукати  їх  тут,  на цьому  іржавому  обдертому  судні,  що  бовваніє  серед  моря уже  тільки  як  льотчицька  мішень!
 Ніч  зоряна,  видна,  в  такі  ночі  співає  степ.  Десь  і  зараз далеко  з  берега  ніби  долинає  пісня  —  ні,  тільки  вчувається. Коники  сюркочуть  —  ні,  тільки  обман  слуху...  Тінь  від судна  темніє  на  воді,  а  море  темним  полиском  мерехтить безкрайньо,  як  мерехтіло  воно  колись  Магелланові  і  Васко да  Гамі...  Простори  океанів  відкривались  і  тобі,  але  твоє судно  ніколи  звідси  не  попливе,  на  мертвому  якорі  воно!  А океан,  живий,  вічний  океан,  хлюпає  в  борти,  б’є  в  підніжжя цієї  сталевої  безжиттєвої  скелі,  наганяє  думи  про  владу сліпих  сил,  про  неминучість  удару,  про  неможливість  відвернути  його...  Ні,  так  можна  дійти  до  божевілля!  Невже все?  Отак  безглуздо?  Світлий,  чистий  океан  життя  стелився перед  ним,  а  тепер  що:  океан  тьми  і  хаосу?  Кінець?  Усьому кінець?  Оце  повне  життя  й  молодості,  повне  краси  й  любові дівоче  тіло  буде  повільно  зсушене  голодом-спрагою?  Треба  шукати  виходу.  Будь-що  знайти  вихід.  Треба  боротись. Боротись  —  цього  вчила  його  мати,  вчили  в  школі,  це  чув він  безліч  разів,  про  це  стільки  читав...  Боротись,  але  як?  З чим?  З  безглуздям  самого  становища,  сліпого  випадку? Коли  батько  боровся  на  фронті,  він  знав,  що  йому  треба вбити  ворога,  —  з  ним  борись...  А  тут  хто  твій  ворог?  Море?  Небо?  Ота  зоряна  дорога,  що  над  морем,  над  степами пролягла?  Все,  що  є,  що  вчора  ще  було  радістю,  красою, життям,  зараз  мовби  готує  тобі  муку  і  смерть.
 Двигуни!  Може,  десь  там  у  глибині  судна  збереглись двигуни?  Може,  їх  якось  можна  запустити,  зрушити  ними всю  цю  махину  з  місця?  Як  ніч  мине,  він  спуститься  й  туди, в  машинне  відділення,  ще  раз  усе  обстежить,  обнишпорить, як  вони  з  хлопцями  це  робили.  А  поки  що  тільки  й  б’ються на  цьому  сталевому  гіганті  оці  їхні  двоє  невтомних,  стукотливих  у  грудях  сердець...
 Було  свого  часу  й  тут,  на  цьому  судні,  життя,  в  будні  й  в свята  ходив  по  морю  цілий  колектив  людей,  цілий  світ пристрастей,  думок,  мрій,  носило  по  хвилях  це  судно,  одягнуте  у  важку  непробійну  сталь.  Вдень  і  вночі  вистоювали вахту  колоді  хлопці  по  своїх  місцях,  чергували  біля  гармат бойові  обслуги,  а  вечорами,  може,  якраз  тут,  на  баку,  лунала  гармошка,  задумливо  лилися  матроські  пісні.  Багато  таких  суден  тепер  списують,  ріжуть,  вантажать  на  платформи й  відправляють  на  металургійні  заводи,  щоб  з  цього  металобрухту  народилися  трактори,  комбайни,  різні  розумні  й гарні  машини...  Деякі  радіодрібнички  ще  й  він,  Віталій, встиг  добути  з  корабельної  радіорубки,  і  вони  йому  були дуже  до  речі,  коли  збирав  свій  любительський  передавач.
Сюди  б  йому  той  передавач,  що  ото  на  друзки  тоді  розлетівся,  запоганений  Яцубою...  Пізніше  сам  Яцуба  звернувся  до  нього  уже  як  представник  ДТСААФу,  запропонував  зареєструватись  у  гуртку  радіоаматорів,  бо  тобою,  каже,  і  в  області  зацікавились  після  того,  як  ми  тебе  запеленгували...  Десь  там,  по  той  бік  рокованої  межі,  зостались його  запеленговані  пустощі,  улюблена  робота,  коли  він, уже  повноправно  господарюючи  на  радіовузлі,  надівши навушники  радиста,  поринав  у  гомін  ефіру,  зосталася  в іншій  реальності  й  спрагла  материна  любов,  і  чиста  Сашкова  дружба...  Одним  необдуманим  кроком  він  відділив  себе від  усього  того,  саме  життя  своє  поставив  під  такий  удар...
День  починався  сміхом,  летом,  поцілунками,  все  попереду віщувало  тільки  удачу,  обом  заваблювали  душу  світлі  простори,  сонце,  синє  роздолля...
 А  лихо  сталось.  Мовби  змужнілим  поглядом  Віталій  оглядає  себе,  обдумує  знову  й  знову,  як  це  скоїлось  і  як закінчиться.  Невже  це  і  все,  що  він  встиг  у  житті?  Невже  це похмуре,  як  привид  минувшини,  судно  стане  залізним  саркофагом  для  них?  По  суті,  нічого  ще  не  зроблено  в  житті, хіба  що  примус  кому  полагодив  та  керогаз,  а  всі  оті  будовані  й  незбудовані  твої  кораблі,  вони  всі  попереду,  вони помандрують  у  майбутнє  вже  без  тебе,  а  ти,  хлопче,  куди ти  звідси  помандруєш?  Помандруєте,  помандруєте,—  ніби нашіптував  йому  злий  якийсь  голос,—  і  ти,  й  твоя  Тоня,  і ніколи  не  відродитесь,  не  повернетесь  до  ваших  степів  сонячних,  до  магістральних  каналів,  що  їх  там  будують,  до виноградників,  що  там  зеленіють...  Будуть  атомні  ери, міжпланетні  польоти,  дива-чудеса  з’являтимуться  на  землі, але  то  все  буде  уже  без  вас,  без  вас...  Про  людину  кажуть, що  вона  велетень,  бог,  гігант.  І  хіба  ж  не  так?  Володітиме небом,  матиме  владу  над  грозами,  над  стихіями,  все  небо буде  їй  підвладне,  —  з  блискавицями,  з  дощами,  з  нуртуванням  хмар!  Усі  могутні  сили  природи  будуть  послушні людській  волі,  порухові  людської  руки.  А  ти  ось  тут  не можеш  зрушити  з  місця  купу  залізного  брухту,  не  можеш викресати  іскру  вогню,  не  владен  відвести  від  своєї  Тоні удар...
 Ось  вона  дихає,  ось  поворухнулася  —  йому  чути  це.
 —  Зоряно  як,  —  Тоня  підвелася,  сіла,  підібгавши  ноги.  —  Я  довго  спала?  Мабуть,  уже  пізно?  А  руки  як  щемлять  від  того  скла...  Чого  ти  мовчиш?
 —  Після  того,  що  сталося,  Тоню,  ти  повинна  мене  б... зненавидіти.
 —  Що  ти  вигадуєш?  —  Тоня  взяла  його  руку.  —  За  що? Це  я  дурна,  що  тебе  не  втримала,  сама  піддалась...  Тобі холодно?
 Відчувши,  що  хлопець  дрижить  у  своїй  майці,  вона  притулилась  до  нього,  пригорнула,  щоб  зігріти:
 —  Тулись  до  мене,  тулись.
 —  Я  вже  думав  плота  зв’язати,  якесь  «контікі»,  —  глухо сказав  Віталій.  —  Але  ж  ніякого  дерева  тут,  сама  сталь.
 —  Якби  хоч  вода  була,  —  мовила  Тоня  згодом.  —  Ніч холодна,  а  пити...  просто  сушить  всередині.  Це  правда, Віталику,  що  людина  довше  може  витримати  без  їжі,  ніж без  води?
 —  Ми  питимемо  морську.
 —  Її  не  можна  ж.  Наші  тато,  як  розвеселяться,  все  люблять про  того  чумака  розказувати,  що  вперше  біля  моря  опинився та  хотів  воли  напоїти.  Води  багато,  розпріг,  пустив  круторогих  напувати,  а  вони  не  п’ють.  «Он  ти  яке!  —  вигукнув  чумак, звертаючись  до  моря.  —  Тому  тебе  багато  й  є,  що  тебе ніхто  не  п’є!»
 —  А  ми  питимем.  Один  французький  лікар  довів,  що  й морську  можна.
 —  Ну,  в  них,  кажуть,  і  жабенят  можна  ковтати,  —  мовила  на  це  Тоня.  —  А  пригадуєш,  Віталику,  яку  ми  воду  в Каховці  пили?  З  кубинцями  біля  джерела?
 Віталик  тільки  зітхнув.  Ще  б  пак,  не  пригадати  ті  ключі-джерельця  на  березі  Дніпра,  де  було  колись  село  Ключове і  де  їх  ще  й  зараз  сотні  б’є  з  відкритого  берега,  з-під коріння  верб  та  платанів...  Села  Ключового  нема  вже,  є натомість  місто  Нова  Каховка,  а  джерельця-ключі  зосталися,  живуть,  виструмовують  всюди:  чи  з  тріщин  берега,  чи з-під  кореня,  а  то  й  просто  —  тільки  гребни  землю  рукою, там  уже  й  ворушиться  пісок,  явориться  водичка!  Холодна, скаламучена  вона,  але  каламуть  швидко  осідає,  і  вже  ти п’єш  воду  таку  свіжу,  прозору  та  чисту,  що  недаром  про  неї кажуть:  як  сльоза.  Височать  понад  берегом  платани  могутні,  що  кора  на  них  —  неначе  атлас,  з-під  коріння  їхнього  теж  пробиваються  джерельця,  а  один  струмінчик витікає  просто  з  дупла  старої  верби  при  землі  і  весело дзюркоче  по  камінчиках  у  Дніпро...  З  нього,  з  цього  струмочка,  вони  й  пили  разом  з  молодими  кубинцями  —  студентами  Каховського  технікуму  механізації  сільського  господарства...  Хлопці  віку  майже  Віталикового,  вони  жили  і вчились  у  Каховці,  правда,  спершу  незвичні  були  до  нашого  клімату,  все  мерзли,  а  потім  принатурились,  тільки  в Дніпрі  мало  хто  з  них  купався  —  Дніпро  для  них  був  і влітку  холодний.  Того  дня  вони  вже  прийшли  були  прощатися  з  Дніпром  перед  поверненням  на  батьківщину.  Тоня не  втерпіла,  зачепила  їхнє  товариство:
 —  Україна  подобається?
 —  О!  —  Вигук  захоплення  був  їй  у  відповідь.
 Це  вже  вони  вдома,  повезли  аж  на  Кубу  добуту  науку  і спомин  про  Дніпро,  про  вікові  платани  каховські,  з-під яких  десь  там  і  зараз  всюди  б’ють,  яворяться  джерела  і стікають  прозоро  в  Дніпро...
 Немовби  то  було  десь  на  іншій  планеті  —  і  випускний вечір  з  врученням  атестатів,  і  кримська  подорож,  і  квітуюча  рожами  дорога  на  Каховку.  Був  той  світ  широкий, розливистий,  повен  надій,  повен  життя,  а  тепер  ось  кинуло їх  на  цей  острів  смутку  й  розпуки,  ніби  на  галеру  прикувало  залізну,  непорушну.  А  могло  ж  усе  скластись  інакше, могло  їх  і  не  занести  сюди,  та  й  саме  це  судно-брухт  могло бути  розпиляне  на  шматки  десь  у  Кримській  бухті.  Бачили ж  вони  під  час  екскурсії  величезний  крейсер,  що  його  газорізальники  краяли  на  окремі  брили,  на  великі,  а  тоді  ще на  менші,  розміром  такі,  щоб  їх  можна  було  вкинути  в домну.  Податливо,  мов  шматок  мила,  краялась  на  їхніх очах  грубезна  корабельна  сталь.  Потужні  крани  підхоплювали  багатотонний,  щойно  відбатований  брухт,  перекидали  його  на  берег,  там  була  його  вже  ціла  завадь,  а газорізальники  в  захисних  окулярах  всюди  висіли  на  бортах  та  робили  своє,  струмені  світла  від  них  так  і  бризкали,  і борти  переставали  бути  бортами,  і  ватерлінія  горіла  під струменями  палаючого  кисню!..
 —  Ляж,  Віталичку,  та  поспи,  —  з  ласкою  в  голосі  мовила  Тоня,  пригріваючи  свого  невдаху-морехода.  —  Може, уві  сні  що-небудь  надумається.
 Таке  в  ній  ніжне,  голубляче  почуття  з’явилось  до  нього, яке,  мабуть,  буває  в  матері  до  дитини,  бо  такий  він  став зараз  маленький,  беззахисний  у  самій  майці.  Скрутився клубочком,  зіщулився,  схилився  їй  на  руки,  і  ласка  до  нього  росте,  і  це  почуття  до  нього  гріє  і  її  саму.  Якби  ж  можна отак,  щоб  приколихати  його,  а  прокинеться  —  вже  ночі нема,  і  заліза  цього  нема,  і  замість  моря,  що  оточує  їх,  уже степ  навкруги,  сповнений  краси  і  вільготи...  Шукатимуть їх  —  це  напевне,  на  весь  радгосп  здіймуть  веремію,  але шукатимуть  де  завгодно,  тільки  не  тут.  А  може,  хто  й  догадається?  Ох,  перепаде  їй  ґ  иглиґ  и  від  батька  —  він  її  висвятить,  як  найде!  Батіг  би  йому  зараз  такий,  щоб  аж  звідти дістав  баламутну  свою  доню  по  жижках!  Тато,  мабуть,  зараз  з  вівцями  в  степу,  —  де  ж  йому  ще  бути,  веде  отару попаски,  може,  навіть  і  поглядає  в  цей  бік  на  окутане  зоряною  темрявою  море,  але  й  на  думку  йому  не  спаде,  куди оце  занесло  його  дзиґу,  баламутку,  його  куйовдю.  Закричати,  заволати  б  оце  звідси  в  степи,  до  нього!..  Аж  теплою хвилею  обдало  Тоню  при  згадці  про  батька,  про  його  запальність  та  гостру,  гоноровиту  вдачу.  Який  він  безстрашний  та  веселий  стає,  коли  вип’є  чарку,  як  усіх  критикує,  не супереч  тоді  йому,  все  викаже  після  довгої  чабанської  мовчанки...  А  в  душі  його  є  щось  поетичне.  Згадуються  їй  пісні його  напідпитку,  і  посаджені  зіркою  тополі,  і  ота  чудернацька  татова  звичка  надівати  Петриків  льотчицький  кашкет,  щоб  красуватися  в  ньому  цілу  ніч  біля  отари.  «Тіло зсихається,  а  дух  бунтує»,  —  так  сказала  якось  Демидиха про  нього,  і  такий  він  і  є,  її  тато.  Невже  вона  більше  з  ним не  побачиться,'  не  зустрінеться  ніколи  ні  з  мамою,  ні  з братом  та  сестрою?  Невже  не  бути  їй  більше  біля  вогнища  в піонертаборі,  де  вона  залишила  стільки  розваг  і  веселощів? Через  море  брела,  спішила,  забейкана  прибігла  в  садок  на побачення,  і,  виходить,  спішила  на  своє  безголів’я...  Уявляє,  як  Лукія  Назарівна,  ця  сувора  й  справедлива  жінка, примчить  до  них  на  кошару,  накинеться  на  батька:  «Де дочка?  Це  вона  мого  сина  занапастила!»  А  він  теж  розкричиться  у  відповідь,  бо  він  не  з  тих,  щоб  терпіти,  коли  посягають  на  його  чи  доччину  честь.
 Буде,  буде  й  там  горя...  Поїхали  купатись  і  втонули  — ось  що  подумають  у  радгоспі.  Згадалось  Тоні,  як  позаторік на  Свято  врожаю  поїхали  колективно  з  Центральної  до моря  купатись,  —  на  Третій  відділок  вирішили,  там  найкращий  пляж,  і  один  молодий  комбайнер,  далеко  запливши, втонув  того  дня.  Шукали  його  до  ночі,  так  і  не  знайшли. Через  кілька  днів  труп  його  вже  у  відкритому  морі  прикордонницький  катер  підібрав  —  обличчя  нема,  очей  нема  — чайки  повикльовували,  тільки  по  татуюванню  на  руці  і впізнали.  «Шурко»,  —  було  витатуйовано  там...
 А  Віталик  спить  після  втоми  та  виснаги,  спить  в  неї  на
колінах.  Хай  відпочине,  тоді  він,  може,  й  справді  що-не-
будь  придумає,  вона  в  нього  вірить  і  зараз  не  менше,  як
тоді,  коли  сідала  в  каючок.  Мабуть,  з  цієї  віри  в  нього,  в
його  здібності  і  зародилось  ще  в  школі  її  почуття  до
Віталика.  Для  неї,  яка  з  трійок  не  вилазила,  було  просто дивовижно,  як  він  швидко  все  схоплював,  який  розум  у нього  чіпкий  та  бистрий,  в  трудні  хвилини  на  виручку цілому  класові  приходила  його  догадливість,  блиск  його думки,  його  тямущість.  Вона  була  певна,  що  в  майбутньому  його  жде  щось  незвичайне,  це  ж  із  таких  скромняг  виростають  ті,  що  стають  потім  відомими,  роблять  великі відкриття,  а  вона  ось  його  не  вберегла.  Зараз  у  цій  скруті він  став  ще  дорожчий  для  неї,  ніжність  до  нього  росла, гаряче  почуття  вихоплювалось  з  душі  через  край...  Як  вона хотіла  б  зберегти  його  для  днів  завтрашніх,  для  всього  того, що  він  міг  би  здійснити,  винайти,  відкрити!  У  своїх  мріях бачила  його  то  в  далеких  океанах,  то  в  отих  зоряних космічних  просторах,  де  Віталик  у  скафандрі  вже  прокладає  дороги  до  інших  планет...
 Тоня  не  може  пробачити  собі,  що  так  мучила  його різними  витівками,  комизливістю,  вдачею  своєю  дженджуристою...  Ревнощі  оті,  що  спалювали  хлопця  не  раз,  — диму  ж  без  вогню  не  буває!..  Сержант  з  полігона  таки  двічі проводжав  її  додому  і  навіть  трішки  подобався  їй.  Смішний!  Прощаючись,  він  щоразу  весело  казав:
 —  Іду  служити!
 І  вчитель  фізкультури  теж  їй  подобався  трішки,  і  льотчик  Сіробаба,  особливо  його  чорні  розкішні  вуса...  Але  ж тільки  трішки,  зовсім  не  так  вони  їй  подобались,  як Віталик.  Мабуть,  з  часом  і  він  сам  це  зрозумів,  бо  говорив про  сержанта  без  злості  й  насмішкувато  радив  Тоні,  щоб вона  власноручно  нарвала  своєму  колишньому  кавалерові стручків  із  софори-дерева  в  парку,  —  тими  стручками  хай тільки  терне  по  чоботях,  то  вони  аж  горітимуть,  ніяка  сукнина  такого  блиску  не  дасть...
 Котра  зараз  година?  Чи  скоро  почне  світати?  Зоряний степ  розкинувся  угорі.  Великий  Віз  повернувся,  завис. Гроном  Волосожар  стоїть  незвично  високий  і  незвично блискучий  —  чи  то  йому  ніч  степова  яскравості  додає?  А через  усе  небо,  просто  над  судном,  проліг  зоряний  Чумацький  Шлях.  Усе  бачив,  що  було,  і  все  бачитиме,  що  буде...  А ген-ген  над  степом  блищить  ще  одна  зірка,  навіть  не  схожа на  зірку,  така  яскрава.  Ніколи  Тоня  не  бачила  зірки  такої величини...  Може,  то  Сіріус?  Чи  планета  Венера?  Чи  інша яка  планета?  Десь  у  західній  частині  неба,  здається,  літак гуде.  Тоня  прислухалась:  так,  справді  гуде.  Видно,  йде  на дуже  великій  висоті,  бо  ледь  чути  його  десь  аж  між  зірками Чумацького  Шляху...  Дужче  та  дужче  стугонить  небо,  і  вся ніч,  і  море  мовби  прислухаються  до  того-  далекого  стугоніння,  де  летить  людина,  володар  усього.  Образ  брата Петра  та  дружна  компанія  його  друзів  льотчиків,  з  якими він  заїздив,  спливають  на  думку  Тоні:  може,  то  якраз  вони йдуть  на  великих,  підзоряних  висотах...
 Розбуджений  гуркотом  літака,  схопився  на  ноги  Віталій і,  ще  не  прочманівши  зі  сну,  шарпнув  Тоню:
 —  Ховайсь!
 Він  штовхнув  її  в  якусь  будку,  в  залізну  темряву,  звідки тільки  й  видно  було  круглий  зоряний  клаптик  неба  в  ілюмінатор...  Тоня  не  розуміла,  що  його  так  наполохало  спросоння.
 —  Чого  ти,  Віталику?
 Він  мовчав.  Чути  було,  як  він  схвильовано  дихає  в  темряві.  Тоня  подумала,  що  це  йому  стало  ніяково  за  свій переполох,  а  Віталій  не  почував  ніяковості,  він  зараз  був сповнений  тривоги,  бо  знав  більше,  ніж  Тоня,  припавши  до ілюмінатора,  напружено  дослухався  до  неба,  а  в  голову стукала  й  стукала  думка:  «Ми  —  ціль!  Ми  —  мішень!  Нас летять  бомбити!  Нас  бомбитимуть!»
 Небо  —  все  небо  стугонить  рівно,  владно,  дедалі  грізніш.  Піднявшись  десь  із  далеких  аеродромів,  на  рівні  зірок ідуть  могутні  машини,  гіганти  стратегічної  авіації.
 Можливо,  на  полігон,  а  можливо,  скинуть  свій  вантаж  як-раз  над  затокою,  бо  й  сама  ця  затока  є  тільки  часткою  полігона,  його  водяною  дільницею,  а  судно  це  для  того  й  залишено  тут,  щоб  його  бомбити,  щоб  по  ньому  влучати.  Вже бомбили,  і  ще  бомбитимуть  —  бомбитимуть,  доки  не  розбомблять,  доки  не  буде  виконана  вся  військова  програма!..
 —  Де  ж  він?
 Тоня,  притулившись  до  Віталика,  теж  визирає  в  ілюмінатор.  Стугоніння-гуркіт  даленіє,  тане  в  високості.  Тихим  стає  небо.
 Наелектризовані  обоє,  вони  вибираються  із  своєї  схованки  і  знову  бачать  над  собою  вгорі  величезний  зоряний степ.  Уже  ледве  чутно  бринить  їм  той  невидимий  літак  чи ціла  армада  літаків,  що  пішли  й  пішли,  даленіючи  в  зоряній куряві  Чумацького  Шляху.
 Через  деякий  час  почули  гуркіт  над  полігоном.  І  ще гуркіт.  І  ще.  Потім  усе  вщухло,  виповнилась  тишею  ніч.
 Але  хлопець  уже  не  міг  тепер  не  дослухатись  до  неба,  до його  зоряних  глибин.  Час  од  часу  вчувалось  йому,  що  небо із  заходу  починає  загрозливо  стугоніти.  «І  це  так  триватиме  весь  час?  Це  ми  весь  час  так  житимем  тут,  на  цьому іржавому  ковчезі?»  —  з  тривогою  думав  він,  поглядаючи на  Тоню,  теж  присмучену  якимись  догадками.  А  Тоні  чомусь  згадалися  в  цей  час  братові  слова  про  те,  що  важко бомбити  море  в  зоряну  ніч...  Та  ще  згадалась  розповідь Петрового  друга  про  війну,  про  те,  як  гинули  льотчики фронтові:  полетять  —  і  нема,  не  вертаються,  і  наче  й  досі вони  десь  там,  у  зоряних  висотах,  живуть...
 Решта  ночі  минула  спокійно.
 Притулившись  одне  до  одного,  вони  мовчки  дивились, як  над  світом  поступово  виднішає,  обрії  ширшають,  у  попелястому  небі  тануть  зірки.  Це  був  той  ранній  час,  коли  в степу  так  гарно,  коли  чабани  випускають  овець  із  кошар  і зорюють,  тобто  ведуть  їх  попаски  степом  ще  при  світлі зорі;  це  найкращий  час  для  чабана  —  вести  отару,  доки  ще не  жарко,  по  прохолодних  випасах  і  слухати,  як  у  тихім ранковім  повітрі  подзвонює  тронка...  Так  лунко-лунко  навкруги,  за  цілі  кілометри  чути,  як  десь  проторохтить  гарба із  ферми  в  степ  і  як  десь  там  уже  перегукуються  люди, накладаючи  сіно  в  гарбу.  Там  спокій,  лад,  ще  один  трудовий  день  починається.  Чабани,  зійшовшись,  спокійно  будуть  перемовлятись  про  нічну  роботу  льотчиків,  що,  мов громовержці,  гуркотіли  над  полігоном.
 Схід  розжеврюється,  море  світлішає,  ось-ось  сонце зійде...  Серед  вічно  живих  мерехтливих  хвиль  моря  тільки судно  їхнє  з  покривленими  щоглами  стигне  в  непорушності.  У  глибині  степу,  десь  аж  під  небосхилом,  ледь  темніє цяткою  Центральна.  Ні  парку,  ні  фронтону  школи,  ні вітродвигуна  з  його  пропелером,  ні  павутинок  телевізійних антен  —  нічого  не  розрізниш,  усе  там  злилось,  як  у  мареві, так  далеко.
 —  Віталику,  скільки,  по-твоєму, буде туди?
 —  Та  стільки  ж,  як  і  вчора  було...
 Він  усміхається  скупо,  краєм  рота,  а  глянувши  на  неї,  аж  трохи  ніяковіє  і  одразу  якось  гарнішає  з  лиця.  Ще  в  школі дівчата  помічали,  що  він  гарнішає,  коли  дивиться  на  Тоню.
 У  задумі  схилився  хлопець  на  поруччя  борту,  і  йому снуються  в  голові  різні  проекти,  згадується  капітан  Дорошенко  —  як  би  він  у  такій  ситуації  повівся?  Є  ж  люди,  що не  занепадають  духом,  не  втрачають  самовладання  за будь-яких  обставин!  Шукати,  думати,  боротись  —  в  цьому тепер  ти  весь.  Полізе  шукати  двигунів,  спробує  викресати вогню,  добуде  для  Тоні  забортової  води...
 —  Глянь,  Віталику,  птиця  якась  сіла  на  воду.
 —  То  галагас.
 Наблизившись  до  борту,  вони  стежать  за  тим  птахом,  а він,  сівши  оддалік  між  хвилями,  вільно  і  ніби  аж  з  насолодою  погойдується  на  воді.  Вода  і  птах  мовби  заспокоювали.
Не  хотілося  думати  в  ці  хвилини  про  жахіття  невідомості, ні  про  свою  безвихідь,  ні  про  те  нічне  стугоніння  неба,  бо зараз  навкруги  така  тиша,  такий  простір,  така  краса.
 Від  довгого  стояння,  від  того,  що  сонце,  пригріваючи вже,  їх  п’янило,  здалося  їм,  що  судно  пливе.  Але  то  тільки хвилі  плили,  обтікали,  омиваючи  його  борти,  і  котились далі,  а  судно  стояло  на  місці.  Рухалась  планета,  рухалось сонце  в  небі,  рухались  води  своїми  вічними  валами,  а  воно стояло  між  хвиль  іржаво,  тупо,  непорушно.
 Так  уявно  пливтиме  це  судно  цілий  день,  коли  сонце  ще дужче  п’янитиме,  дурманитиме  їх,  і  палуба  знов  розпечеться,  і  вся  ця  залізна  гора  пашітиме  на  них  своїм  іржавим вогнем.  Потім  знову  зайде  ніч,  десь  за  тисячі  верст  льотчики  надіватимуть  шоломофони  та  парашути,  рушатимуть  до своїх  бомбардувальників,  і  розмова  буде  між  ними  про  те, що  зоряне  море  бомбити  важко...  А  ці  двійко,  що  на  судні, забравшись  на  бак,  сидітимуть  на  своєму  залізному  острові,  ждучи  нічного  удару,  сидітимуть,  мовчазно  зіщулені, мов  останні  діти  землі,  мов  сироти  людства.
 
За матеріалами: Олесь Гончар. Спогад про океан. Новели. Упорядкування Валентини Гончар. Передмова Яреми Гояна. Художник Олексій Штанко. Київ, "Веселка", 1995, стор. 271 - 302.

 

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Доля  Олеся  Гончара,  світоча  української  нації,  так  зріднена  з долею  України,  як  зріднені  мати  й  син.  Він  прийшов  на  світ,  коли  з любові  й  муки  після  сивих  віків  борні  народжувалася  наша  держава  - Українська  Народна  Республіка.  Він  як  ровесник  її  прожив  з  вірою,  що вона,  хоч  і  була  розіп'ята  на  хресті,  ще  не  вмерла  і  не  вмре.  Він  дожив з  цією  вірою  до  Великодня  її  воскресіння  і  урочисто  вітав  цю  святу годину  на  всенародному  вічі.  Він  як  національний  проводир  до  соборності  України  поклав  на  вівтар  свободи  Матері  серце  і  душу  і відійшов  за  межу  життя  з  синівською  думою,  що  Україна  жива...

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